सीडीएस जनरल अनिल चौहान के हालिया बयान ने कुछ स्पष्टता प्रदान की है। अब पहलगाम से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक की घटनाओं की उच्चस्तरीय समीक्षा समिति की आवश्यकता महसूस होती है। विपक्ष द्वारा संसद के विशेष सत्र की मांग भी इस संदर्भ में उचित प्रतीत होती है।
शांगरी-ला डायलॉग में भाग लेने के लिए सिंगापुर गए सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने एक अमेरिकी टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में पुष्टि की कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान 6-7 मई की रात भारत का एक लड़ाकू विमान गिरा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह घटना महत्वपूर्ण नहीं है। असली सवाल यह है कि यह क्यों हुआ? और यह भी कि जो टैक्टिकल गलती हुई, उसे सुधारने के बाद भारत ने दो दिन बाद जबरदस्त हमले किए। विश्व मीडिया में इस घटना को लेकर जो सुर्खियां बनी हैं, वे इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारत ने अपने फाइटर जेट के गिरने की बात स्वीकार की है, लेकिन सीडीएस ने जिस प्रश्न का उल्लेख किया है, वह भारत के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
विमान गिरने का कारण, वह टैक्टिकल गलती और क्या इसमें चीन में निर्मित हथियारों की भूमिका थी, ये सभी प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं। निश्चित रूप से, इन सभी जानकारियों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। लेकिन इस संदर्भ में कुछ सूचनाएं लोकतांत्रिक जवाबदेही के दायरे में आती हैं। वर्तमान सरकार को अपनी ही पार्टी की पूर्व सरकार से सीख लेनी चाहिए। करगिल युद्ध के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने घुसपैठ और युद्ध के अनुभवों की पूरी समीक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। स्पष्ट है कि पहलगाम से ऑपरेशन सिंदूर तक की घटनाओं के लिए ऐसी समिति की आवश्यकता है। विपक्ष की संसद के विशेष सत्र की मांग भी इस संदर्भ में उचित है।
आखिरकार, खुफिया चूक और सुरक्षा संबंधी भूलों को अब सरकारी स्तर पर स्वीकार किया जा चुका है। इन पर इस क्षेत्र में तेजी से बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों के संदर्भ में व्यापक चर्चा की आवश्यकता है, ताकि देश भविष्य की चुनौतियों के लिए बेहतर तैयारी कर सके। इसके अलावा, भारत की कूटनीतिक विफलताओं की भी समीक्षा होनी चाहिए, जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान स्पष्ट हो गई थीं। केंद्र को यह समझना चाहिए कि यह किसी एक सरकार या दल का मुद्दा नहीं है। इससे सर्वोच्च राष्ट्रीय हित जुड़े हुए हैं। इसलिए हर 'क्यों' का उत्तर खोजा जाना चाहिए और यथासंभव उस पर सार्वजनिक चर्चा होनी चाहिए।
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