हिंदू धर्म में हर माह आने वाली कालाष्टमी को काल भैरव की पूजा के लिए बहुत खास माना जाता है। कालाष्टमी व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। वैशाख मास की कालाष्टमी व्रत 20 अप्रैल, रविवार को मनाया जा रहा है। इस दिन निशिता मुहूर्त में काल भैरव की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन पूजा-पाठ और व्रत के अलावा व्रत कथा का पाठ करना भी लाभकारी होता है।
मासिक कालाष्टमी के दिन भगवान शिव के उग्र अवतार यानि भगवान कालभैरव की पूजा का विधान है। कालभैरव को तंत्र-मंत्र के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। ऐसे में इस दिन कालभैरव की पूजा कर आप शुभ फल प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही इस दिन कालाष्टमी व्रत कथा का पाठ करने से शत्रुओं और सभी भय से मुक्ति मिलती है।
कालाष्टमी शुभ मुहूर्तपंचांग के अनुसार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 20 अप्रैल रविवार को शाम 7 बजकर 1 मिनट पर लग रही है. यह तिथि 21 अप्रैल को शाम 6.58 बजे तक रहेगी। उदयातिथि के अनुसार वैशाख माह में कालाष्टमी 20 अप्रैल को मनाई जाएगी।
कालष्टमी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा ने भगवान शिव का अपमान कर दिया था। इस अपमान से क्रोधित होकर भगवान शिव ने काल भैरव का भयंकर रूप धारण किया। कालभैरव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया। इसके बाद ब्रह्माजी ने कालभैरव बाबा से माफी मांगी, जिसके बाद कालभैरव शांत हो गये.
लेकिन ब्रह्मा का सिर काटने के कारण बाबा भैरव पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया। इसके बाद भगवान शिव ने भैरव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने का उपाय बताया और उसे पृथ्वी पर जाकर तपस्या करने को कहा। इसके बाद बाबा भैरव ने भगवान शिव के बताए मार्ग का अनुसरण किया और कई वर्षों तक पश्चाताप किया और अंत में काशी में अपनी यात्रा पूरी की।
कालभैरव को बाबा विश्वनाथ की नगरी में ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली और वे काशी के कोतवाल बन गए तथा सदा के लिए वहीं बस गए। कालभैरव को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है और वे भक्तों के भय और संकटों को दूर करते हैं।
कालाष्टमीचे महत्त्वकालाष्टमी का व्रत करने से भक्तों को कई लाभ मिलते हैं।
कालाष्टमी व्रत रखने से भय और संकट से मुक्ति मिलती है।
कालाष्टमी का व्रत जादू-टोने और टोने-टोटके से सुरक्षा प्रदान करता है।
कालाष्टमी का व्रत जीवन में समृद्धि और खुशियां लाता है।
कालाष्टमी का व्रत नौ ग्रहों के अशुभ प्रभावों से मुक्ति दिलाता है।
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