बचपन से सुनीं वेस्ट मैनेजमेंट की बातें
शिखा के पिता विष्णु शाह ऑटोमोबाइल के कचरे से मेटल बनाने का बिजनेस करते थे। शिखा बचपन से ही 'कचरे से कीमती चीजें बनाने' की बातें सुनती आई थीं। निरमा यूनिवर्सिटी से बिजनेस की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अमेरिका की बैब्सन यूनिवर्सिटी से आंत्रप्रेन्योरशिप और लीडरशिप में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। मां से प्रभावित हो वह 19 साल की उम्र में एक एनजीओ से जुड़ गई थीं। जल्द ही उन्हें एहसास होने लगा कि बड़ा बदलाव लाने के लिए व्यवसाय के साथ उद्देश्य को जोड़ना होगा।
2019 में रखी कंपनी की नींव
शिखा ने दिसंबर 2019 में ऑल्टमैट की शुरुआत की। उनके पिता कंपनी को रणनीतिक मार्गदर्शन देते हैं। शिखा जानती थीं कि लगभग 57 फीसदी कपड़े पॉलिएस्टर से बनते हैं, जो प्लास्टिक है। हर बार जब इसे धोया जाता है तो यह माइक्रोप्लास्टिक छोड़ता है। यह न केवल समुद्री जीवन बल्कि मानव जीवन के लिए भी हानिकारक है। दुनिया की 2.4 फीसदी कृषि भूमि पर कपास उगाने के लिए दुनिया के 24 फीसदी कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। तीन जोड़ी जींस बनाने में 20,000 लीटर तक पानी लग सकता है। वह इसके लिए विकल्प चाहती थीं। उनकी कंपनी सालाना 40 लाख कपड़े (शर्ट या टी-शर्ट) बनाने के लिए पर्याप्त फाइबर का उत्पादन करती है। कंपनी का सालाना उत्पादन 1,000 टन फाइबर है।
किसानों से खरीदती हैं कृषि कचरा
शिखा का वेंचर पायलट प्रोजेक्ट से औद्योगिक पैमाने तक विकसित हुआ है। अब कंपनी सालाना 30 करोड़ रुपये तक के फाइबर का उत्पादन करने में समर्थ है। ऑल्टमैट का 11 बड़े ब्रांड हाउस के साथ कोलैबरेशन है। ऑल्टमैट एम्स्टर्डम स्थित 'फैशन फॉर गुड' एक्सेलरेटर नाम की पहल का हिस्सा है। किसान मुख्य रूप से भोजन, दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के लिए फसलें उगाते हैं। कंपनी उनसे कृषि अपशिष्ट खरीदती है। घास जैसी संरचना को कपास जैसी संरचना में बदला जाता है। फिर उससे सूत बनाया जाता है। इस धागे या सूत से कपड़े, एक्सेसरीज (बैग और जूते) और घरेलू सजावट के सामान (कालीन इत्यादि) बनाए जाते हैं।
कीमत 330-650 रुपये किलो के बीच
खास बात यह है कि इस तरह फाइबर से बना कपड़ा कपास और लिनेन के समान होता है और महंगा नहीं होता है। ऑल्टमैट के फाइबर की कीमत 330 रुपये से 650 रुपये प्रति किलो के बीच है, जो उन्हें रेशम और ऊन की तुलना में अधिक किफायती बनाता है। यह फाइबर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर फलों, तिलहनों और औषधीय फसलों के कचरे का उपयोग किया जाता है। कुछ उदाहरण केले, भांग के बीज और अनानास हैं। कंपनी दूसरे देशों से भी कृषि अवशेष मंगवाती है। किसानों के लिए एग्री वेस्ट का निपटान महंगी प्रक्रिया है। अगर वे कचरा जलाते हैं तो इससे हानिकारक प्रदूषण होता है। किसानों से कचरा खरीदकर ऑल्टमैट किसानों के लिए निपटान की समस्या का समाधान करती है। साथ ही प्रदूषण पर अंकुश लगाती है।
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