राउरकेला, 23 मई . नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी) राउरकेला के शोधकर्ताओं ने एक नई तरह की सेमीकंडक्टर आधारित बायोसेंसर तकनीक तैयार की है, जो ब्रेस्ट कैंसर की कोशिकाओं को आसानी से पहचान सकती है. इसके लिए किसी भी जटिल या महंगे लैब टेस्ट की जरूरत नहीं होती.
इस डिवाइस का नाम है ‘टीएफईटी’ (टनल फील्ड इफेक्ट ट्रांजिस्टर). इसे टीसीएडी (टेक्नोलॉजी कंप्यूटर-एडेड डिज़ाइन) सिमुलेशन के आधार पर बनाया गया है. यह डिवाइस ब्रेस्ट कैंसर की कोशिकाओं को पहचानने में काफी सक्षम है.
एफईटी तकनीक सामान्यत: इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग होती है, लेकिन यहाँ इसे जैविक पदार्थों की पहचान के लिए खास तौर पर बदला गया है.
यह बायोसेंसर पारंपरिक जांचों की तरह किसी रसायन या लेबल की आवश्यकता नहीं होती. यह कैंसर कोशिकाओं की भौतिक विशेषताओं के आधार पर काम करता है. ब्रेस्ट कैंसर वाली ऊतक सामान्य ऊतकों से अधिक घनी और पानी से भरपूर होती हैं. जब इन पर माइक्रोवेव किरणें डाली जाती हैं, तो उनका व्यवहार अलग होता है. इसी फर्क को ‘डाइइलेक्ट्रिक गुण’ कहा जाता है, जिससे कैंसर और सामान्य कोशिकाओं में फर्क करना संभव होता है.
यह रिसर्च “माइक्रोसिस्टम टेक्नोलॉजीज” नामक जर्नल में प्रकाशित हुई है. इसमें बताया गया है कि यह सेंसर ‘टी47डी’ नाम की कैंसर कोशिकाओं को बहुत सटीकता से पहचान सकता है, क्योंकि इन कोशिकाओं का घनत्व और डाइइलेक्ट्रिक गुण अधिक होते हैं.
एनआईटी राउरकेला के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर प्रसन्न कुमार साहू ने कहा, “इस सेंसर को बनाने के लिए ट्रांजिस्टर के अंदर एक छोटा सा खांचा बनाया गया, जिसमें कोशिकाओं का नमूना रखा जाता है. सेंसर उस नमूने की विशेषताओं के अनुसार विद्युत संकेतों में बदलाव पढ़ता है और तय करता है कि कोशिकाएं कैंसर वाली हैं या नहीं. कैंसर कोशिकाओं जैसे टी47डी की डाइइलेक्ट्रिक क्षमता सामान्य कोशिकाओं (जैसे एमसीएफ-10ए) से अधिक होती है, इसलिए सेंसर इन्हें आसानी से पहचान लेता है.”
इस तकनीक की एक और खासियत है कि यह पारंपरिक परीक्षण विधियों की तुलना में काफी सस्ती है. यह अन्य टीएफईटी आधारित बायोसेंसर्स से भी कम खर्चीली है.
यह नई तकनीक भविष्य में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बहुत उपयोगी हो सकती है. इससे कम लागत वाले, आसानी से इस्तेमाल किए जा सकने वाले डिवाइस बन सकते हैं, जिनसे ब्रेस्ट कैंसर की शुरुआती अवस्था में ही पहचान हो सकेगी—चाहे वह अस्पताल हो, मोबाइल टेस्टिंग यूनिट हो या फिर घर.
अब अगला कदम यह है कि शोध दल इस तकनीक को बनाने और उसकी वैज्ञानिक पुष्टि के लिए साझेदारों की तलाश कर रहा है.
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एएस/
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