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दिवाली और छठ के मौक़े पर हर साल होती है भीड़, फिर भी रेलवे स्टेशनों पर भगदड़ को रोकना मुश्किल क्यों?

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ANI बांद्रा टर्मिनस रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 9 लोग घायल हो गए हैं. (सांकेतिक तस्वीर)

भारत में दिवाली और छठ के त्योहार के लिए घर जाने वालों की भीड़ एक बार फिर से रेलवे स्टेशनों पर देखी जा रही है.

इसी भीड़ के बीच देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई के बांद्रा टर्मिनस रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 9 लोग घायल हो गए हैं. रविवार तड़के हुई इस भगदड़ में दो लोगों को गंभीर चोटें आई हैं.

रेल मंत्रालय के एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर (इनफ़ॉर्मेशन एंड पब्लिसिटी) दिलीप कुमार ने बीबीसी को बताया है कि यह हादसा उस वक़्त हुआ जब मुंबई से गोरखपुर जाने वाली 22921 अंत्योदय एक्सप्रेस ट्रेन यार्ड से प्लेटफॉर्म पर लगाई जा रही थी.

उन्होंने बताया है, "ट्रेन अभी प्लेटफॉर्म पर लगी ही थी और लोग चलती ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, जिसकी वजह से यह हादसा हुआ है."

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स्टेशनों पर भीड़ को देखते हुए वेस्टर्न रेलवे ने मुसाफ़िरों से आग्रह किया है कि वो धैर्य के साथ ट्रेनों का इंतज़ार करें और ट्रेनों में बैठें क्योंकि उन्हें इसके लिए काफ़ी समय दिया गया है.

वेस्टर्न रेलवे के प्रवक्ता विनीत अभिषेक ने बताया है कि त्योहारों के मौसम में ट्रेनों को रवाना होने से दो-तीन घंटे पहले ही प्लेटफॉर्म पर लगा दिया जाता है, ताकि लोगों को ट्रेन में बैठने के लिए पर्याप्त समय मिल सके.

त्योहार के सीज़न में भारी भीड़ image ANI अंत्योदय एक्सप्रेस ट्रेन में मुसाफ़िर बैठे-बैठे क़रीब 35 घंटे में 2000 किलोमीटर तक की दूरी तय करते हैं

भारत में हर रोज़ क़रीब ढाई करोड़ मुसाफ़िर ट्रेनों में सफर करते हैं. इसमें सबसे बड़ी तादाद मुंबई में चलने वाली उपनगरीय ट्रेनों के मुसाफ़िरों की होती है.

लेकिन त्योहारों के दौरान लंबी दूरी की ट्रेनों में सीट या बर्थ की मांग काफ़ी ज़्यादा बढ़ जाती है.

रेलवे यूनियन एआईआरएफ़ के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि रेलवे भीड़ को संभाल नहीं सकता है. मुझे लगता है कि रेल अधिकारी भीड़ का आकलन नहीं कर पाए और मुसाफ़िरों की भीड़ उनकी उम्मीद से ज़्यादा थी."

भारत में त्योहरों के दौरान ट्रेनों की मांग इतनी ज़्यादा बढ़ जाती है कि बड़ी संख्या में मुसाफ़िर हज़ारों किलोमीटर का सफर बैठे बैठे भी तय करने के लिए मजबूर होते हैं.

कई बार ट्रेनों में बैठने के लिए भी सीट नहीं मिल पाती है. ट्रेनों में ऐसी भीड़ की तस्वीर अक्सर सोशल मीडिया पर भी लोग साझा करते हुए देखे जाते हैं.

ख़ासकर दिल्ली, पंजाब, मुंबई, गुजरात और भारत के दक्षिणी राज्यों से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और इसके आसपास के इलाकों की तरफ जाने वाली ट्रेनों में यह मांग ज़्यादा होती है.

इस वक़्त त्योहारों के दौरान भी भारत के बड़े रेलवे स्टेशनों पर मुसाफ़िरों की बड़ी भीड़ देखी जा रही है और इस भीड़ से निपटने के लिए रेलवे की तरफ से कई उपाय करने के दावे भी किए जा रहे हैं, जिनमें स्पेशल ट्रेनें चलाना भी शामिल है.

क्या हैं उपाय image ANI स्पेशल ट्रेनों के साथ एक अन्य समस्या यह भी है कि हर साल ऐसी ट्रेनों की घोषणा आमतौर पर काफ़ी देरी से की जाती है.

रेलवे की रेगुलर ट्रेनों में रिज़र्वेशन दो महीने पहले से ही कराए जा सकते हैं. कुछ दिन पहले एडवांस रिज़र्वेशन पीरियड को चार महीने के घटाकर दो महीने किया गया है.

आमतौर पर रेलवे हर साल स्पेशल ट्रेनें चलाता है, भले ही उनकी संख्या कम या ज़्यादा हो सकती है. लेकिन आमतौर पर देखा जाता है कि लोग स्पेशल ट्रेनों में सफर को बहुत पसंद नहीं करते हैं या उनकी प्राथमिकता में ऐसी ट्रेनें नहीं होती हैं.

स्पेशल ट्रेनों के साथ एक अन्य समस्या यह भी है कि हर साल ऐसी ट्रेनों की घोषणा आमतौर पर काफ़ी देरी से की जाती है.

पश्चिम रेलवे की वेबसाइट के मुताबिक़ भी ऐसी ट्रेनों के चलाने की जानकारी सितंबर महीने में दी गई है.

अंतिम समय में ट्रेनों के चलने की जानकारी की वजह से लोग पहले से ट्रेनों में टिकट नहीं ले पाते हैं और उन्हें जिन ट्रेनों के बारे में पहले से पता होता है, उन ट्रेनों के लिए मुसाफिरों की भारी भीड़ देखी जाती है.

रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य (ट्रैफ़िक) श्रीप्रकाश कहते हैं, “एक तो स्पेशल ट्रेनों का किराया ज़्यादा कर दिया गया है और दूसरी बात यह कि उन ट्रेनों के समय पर चलने और मंज़िल पर पहुँचने पर हमेशा सवाल बना रहता है. इसलिए लोग स्पेशल ट्रेनों से ज़्यादा नियमित चलने वाली ट्रेनों को पसंद करते हैं.”

रविवार को मुंबई में जिस ट्रेन में सीट पाने के लिए भगदड़ हुई है, वह भी एक नियमित ट्रेन है.

यह एक अंत्योदय एक्सप्रेस ट्रेन थी जो एक अनारक्षित श्रेणी की ट्रेन है, यानी इसमें केवल बैठने के लिए सामान्य दर्जे की सीट होती है.

अंत्योदय एक्सप्रेस ट्रेन में मुसाफ़िर बैठे-बैठे कई घंटों में हज़ार किलोमीटर की दूरी तय करते हैं, इस ट्रेन में सोने के लिए बर्थ नहीं होती है.

श्रीप्रकाश इस मुद्दे पर एक सलाह देते हैं, “लोग जिस ट्रेन में टिकट चाहते हैं, उन्हें पहले से ही शर्तों के साथ उसी ट्रेन की कन्फ़र्म टिकट दे देनी चाहिए और यात्रा के दिन मूल ट्रेन के ठीक बाद डुप्लिकेट ट्रेन चलाकर भीड़ को मंज़िल तक भेज देना चाहिए.”

स्पेशल ट्रेनें कितनी कारगर image ANI त्योहारी सीज़न में ट्रेनों की ज़्यादा मांग उत्तर रेलवे में काफ़ी बढ़ जाती है

रेलवे हर साल त्योहारों के दौरान बड़ी संख्या में स्पेशल ट्रेनें चलाता है ताकि वो मुसाफ़िरों की बढ़ी मांग पूरी कर सके.

वेस्टर्न रेलवे के प्रवक्ता के मुताबिक़ इस सीज़न में भी वेस्टर्न रेलवे ने देश के अलग-अलग इलाक़े के लिए स्पेशल ट्रेनों की 2500 से ज़्यादा फेरे (ट्रिप) की घोषणा की है. ऐसी क़रीब इतनी ही ट्रेनें सेंट्रल रेलवे भी चला रहा है. रेलवे के इन दोनों ज़ोन का मुख्यालय मुंबई है.

भारत में त्योहारी सीज़न में ट्रेनों की ज़्यादा मांग उत्तर रेलवे में काफ़ी बढ़ जाती है. उत्तर रेलवे ने भी इस साल 1 अक्तूबर से 30 नवंबर के बीच स्पेशल ट्रेनों के 3150 फ़ेरे चलाने का ऐलान किया है. इसके अलावा वो नियमित ट्रेनों में भी क़रीब 60 एक्स्ट्रा कोच लगा रहा है, जिनसे त्योहारों के पूरे सीज़न में क़रीब 2 लाख अतिरिक्त मुसाफिर सफर कर पाएंगे.

उत्तर रेलवे के प्रवक्ता कुलतार सिंह ने बीबीसी को बताया है कि पिछले सीज़न के दौरान उत्तर रेलवे ने स्पेशल ट्रेनों के 1086 ट्रिप्स चलाए थे.

कुलतार सिंह के मुताबिक़, “रेल मंत्रालय के निर्देश पर इस बार ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं, इसके अलावा मांग के आधार पर भी हम किसी ख़ास जगह पर जाने वालों की स्टेशन पर भीड़ को देखते हुए तत्काल स्पेशल ट्रेन चलाते हैं.”

लेकिन इस सुविधाओं के बावजूद ट्रेनों में सीट पाने के लिए लोगों में भगदड़ देखी जाती है.

अतिरिक्त व्यवस्थाएं क्या होती हैं? image ANI भीड़ पर काबू पाने के लिए आमतौर पर कई स्टेशनों पर प्लेटफॉर्म टिकट की बिक्री रोक दी जाती है

त्योहारों के दौरान रेलवे स्टेशनों पर भीड़ पर काबू पाने के लिए आमतौर पर कई स्टेशनों पर प्लेटफॉर्म टिकट की बिक्री रोक दी जाती है ताकि प्लेटफ़ॉर्म पर भीड़ को कम रखा जा सके.

इसके अलावा स्टेशन परिसर में मुसाफिरों के लिए ख़ास व्यवस्था की जाती है ताकि लोगों को ट्रेनों के इंतज़ार के लिए सुरक्षित जगह मिल सके.

रेलवे में त्योहारों या भीड़ के दौरान सुरक्षा व्यवस्था भी बढ़ाने का दावा किया जाता है, हालांकि इन सबके बाद भी स्टेशनों पर भगदड़ का बड़ा इतिहास रहा है और इससे जुड़ी कई छोटी-बड़ी घटना अक्सर सुर्खियों में होती है.

मुंबई में हुई भगदड़ रेलवे में त्योहारों के दौरान होने वाली भगदड़ों में से एक है. पिछले साल भी त्योहारों के दौरान गुजरात के सूरत रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मची थी. ख़बरों के मुताबिक़ इस भगदड़ में कम से कम एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कुछ अन्य घायल भी हुए थे.

भारत में कुछ साल पहले दिवाली के त्योहार के दौरान राजधानी दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर एक बड़ा हादसा हुआ था.

साल 2013 में इलाहाबाद के रेलवे स्टेशन पर कुंभ मेले के दौरान भीड़ के बीच मची भगदड़ में कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई थी.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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