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पीएम मोदी के रूस जाने से पहले भारत ने चीन को लेकर की अहम घोषणा

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mea भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि पीएम मोदी मंगलवार को रूस के कज़ान में ब्रिक्स समिट में शामिल होने जा रहे हैं

भारत और चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर सैनिकों की पट्रोलिंग को लेकर एक समझौते पर पहुँच गए हैं.

पीएम नरेंद्र मोदी के ब्रिक्स समिट में रूस जाने से पहले भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने सोमवार को विशेष प्रेस कॉन्फ़्रेंस का आयोजन किया था.

विक्रम मिस्री ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, ''पिछले कई हफ़्तों से भारत और चीन के बीच राजनयिक स्तर के साथ सैन्य स्तर पर भी बातचीत हो रही थी. इसी का नतीजा है कि दोनों देश एलएसी पर सैनिकों की गश्त को लेकर एक समझौते पर पहुँचे हैं.''

विक्रम मिस्री को उम्मीद है कि इस समझौते के बाद भारत-चीन सीमा से दोनों देशों के सैनिक पीछे हटेंगे और साल 2020 में एलएसी पर जो विवाद शुरू हुआ था, उसका समाधान मिल सकेगा.

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को एनडीटीवी से कहा, ''2020 में भारत के सैनिक चीन से लगी सरहद पर जहाँ तक पट्रोलिंग करते थे, वहाँ फिर से कर पाएंगे.''

दरअसल 2020 के बाद एलएसी पर भारतीय सैनिक जिन-जिन इलाक़ों में पट्रोलिंग करते थे, वहां नहीं कर पा रहे थे. चीन ने रोक दिया था. अब दोनों देश जब फिर से पट्रोलिंग को लेकर समझौते की बात कर रहे हैं तो एस जयशंकर ने कहा कि भारत 2020 की स्थिति में आ जाएगा.

भारत के जाने-माने सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने भारत की इस घोषणा पर लिखा है, ''भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध ख़त्म करने को लेकर कोई घोषणा नहीं की गई है बल्कि ब्रिक्स समिट के दौरान मोदी और शी जिनपिंग की बैठक को सहज बनाने के लिए दोनों देश पट्रोलिंग को लेकर एक समझौते पर पहुँचे हैं.''

विडंबना यह है कि दोनों देशों के बीच सैन्य गतिरोध चीन की ओर से द्विपक्षीय सीमा समझौते के उल्लंघन के कारण है, इसमें सैनिकों की गश्त भी शामिल है.''

image Getty Images भारत चाहता है कि चीन द्विपक्षीय सीमा समझौते का सम्मान करे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22-23 अक्तूबर को रूस के कज़ान में आयोजित ब्रिक्स समिट में शामिल होने जा रहे हैं. इस समिट में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी आएंगे. कहा जा रहा है कि पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय मुलाक़ात भी हो सकती है.

हालांकि विक्रम मिस्री ने दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच द्विपक्षीय मुलाक़ात की पुष्टि नहीं की है, लेकिन उन्होंने कहा है कि द्विपक्षीय मुद्दों पर बात होगी.

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए दर्जनों चरण की बातचीत हो चुकी है, लेकिन दोनों देश अभी अंतिम समाधान तक नहीं पहुँच पाए हैं.

2020 में पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी.

इसमें भारत के 20 सैनिक मारे गए थे और चीन के भी कई सैनिकों की मौत हुई थी.

दोनों देशों के बीच तनाव तब से ही है. हालांकि इसका असर दोनों देशों के व्यापार पर नहीं पड़ा.

2023 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 136 अरब डॉलर पहुँच गया था. 2022 में दोनों देशों के बीच व्यापार 135.98 अरब डॉलर का था.

चीन और भारत के विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात पिछले कुछ महीनों में सीमा विवाद पर हुई थी लेकिन कोई समाधान तक नहीं पहुँच पाए थे.

image Getty Images इसी साल पीएम मोदी 8-9 जुलाई को रूस गए थे जुलाई में ही पीएम मोदी गए थे रूस

पीएम मोदी मंगलवार को 16वें ब्रिक्स समिट के लिए रूस कज़ान रवाना हो रहे हैं. मोदी इससे पहले 8-9 जुलाई को रूस गए थे. यानी इस साल पीएम मोदी का यह दूसरा रूस दौरा है.

कहा जाता है कि चीन और भारत के बीच तनाव कम कराने में रूसी राष्ट्रपति पुतिन अहम भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि रूस और चीन के बीच संबंध बहुत अच्छे हैं.

लेकिन भारत और चीन के बीच का तनाव कोई हाल में पैदा नहीं हुआ है. दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव और युद्ध की पृष्ठभूमि बहुत पुरानी है.

भारतीय इलाक़ों में अतिक्रमण की शुरुआत चीन ने 1950 के दशक के मध्य में शुरू कर दी थी. 1957 में चीन ने अक्साई चिन के रास्ते पश्चिम में 179 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई.

सरहद पर दोनों देशों के सैनिकों की पहली भिड़ंत 25 अगस्त 1959 को हुई. चीनी गश्ती दल ने नेफ़ा फ्रंट्रियर पर लोंगजु में हमला किया था. इसी साल 21 अक्टूबर को लद्दाख के कोंगका में गोलीबारी हुई. इसमें 17 भारतीय सैनिकों की मौत हुई थी और चीन ने इसे आत्मरक्षा में की गई कार्रवाई बताया था.

भारत ने तब कहा था कि 'उसके सैनिकों पर अचानक हमला कर दिया गया.'

image Getty Images पीएम मोदी पर कई लोग सवाल उठाते रहे हैं कि चीन के मामले में वह बोलने से बचते हैं चीन पर पीएम मोदी की चुप्पी

भारत के प्रधानमंत्री चीन को लेकर बोलने से बचते रहे हैं. मोदी सरकार की चुप्पी चीन के ख़िलाफ़ रणनीति का हिस्सा है या मजबूरी है?

नई दिल्ली स्थिति जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में असोसिएट प्रोफ़ेसर हैपीमोन जैकब ने अमेरिकी पत्रिका फ़ॉरेन पॉलिसी में पिछले साल दो अप्रैल को एक लेख लिखा था.

इस लेख में जैकब लिखते हैं, ''भारत की ओर से चीनी आक्रामकता को जवाब देना महज़ एक सैन्य सवाल नहीं है. यह राजनीतिक और कारोबारी हितों के कारण काफ़ी जटिल हो जाता है. ऐसे में भारत के लिए यह सोचना बहुत अहम हो जाता है कि अगर भारत चीन को जवाब देने का फ़ैसला करता है, तो कब और कैसे देगा.''

2022 में चीन का जीडीपी 18 ट्रिलियन डॉलर के क़रीब था और भारत का 3.5 ट्रिलियन डॉलर से भी कम था.

पिछले साल चीन का रक्षा बजट 230 अरब डॉलर था, जो भारत के रक्षा बजट से तीन गुना ज़्यादा था. चीन और भारत के बीच का यह अंतर ही भारत पर चीन को बढ़त दिलाता है.

हैपीमोन जैकब ने फ़ॉरेन पॉलिसी में लिखा है, ''अभी तक स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका या अन्य बड़ी शक्तियों के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी क्या इस हद तक है कि चीन से टकराव की स्थिति में भारत के पक्ष में खुलकर आएगी या नहीं. भारत को कोई आश्वासन नहीं मिला है कि चीन से तनाव की स्थिति में उसके साझेदार खुलकर सामने आएँगे.''

''चीन पर भारत की कारोबारी निर्भरता है और दुनिया के किसी भी देश से भारत का कोई पारस्परिक डिफेंस क़रार नहीं है. सैन्य संकट के दौरान भारत समेत जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की सदस्यता वाले गुट क्वॉड की सैन्य मदद की कल्पना करना जल्दबाज़ी होगी. चीन से टकराव की स्थिति में बाहर के किसी देश से सैन्य मदद की उम्मीद अभी मुश्किल है.''

हैपीमोन जैकब ने लिखा है, ''भारत के पास कोई स्पष्ट योजना नहीं है कि वह चीन के साथ संघर्ष की स्थिति में पिछड़ गया, तो क्या करेगा. भारत से ज़्यादा ताक़त चीन के पास है और वह भारत के लिए एक द्वंद्व पैदा कर रहा है. भारत जीत के आश्वासन के साथ युद्ध में नहीं जा सकता और बिना हार के युद्ध की आशंका कम नहीं हो सकती. भारत छह दशक पहले चीन के साथ एक बड़ी हार देख चुका है.''

जैकब का कहना है कि चीन भारत को आर्थिक रूप से भी कई तरह की गंभीर चोट पहुँचा सकता है.

उन्होंने लिखा है, ''भारत दुनिया की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बना है, तो इसमें चीन के सस्ते उत्पादों का भी योगदान है. ये उत्पाद उर्वरक से लेकर डेटा प्रोसेसिंग यूनिट तक हैं. सरहद पर चीन की आक्रामकता के ख़िलाफ़ उस पर व्यापारिक पाबंदी लगाना भारत पर ही भारी पड़ सकता है. हाल ही में अरविंद पनगढ़िया ने भी इसे रेखांकित किया था.''

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