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क्या चित्तौड़गढ़ किले में आज भी भटकती है रानी पद्मिनी की आत्मा ? वीडियो में जानिए सदियों पुराने रहस्य की पूरी कहानी

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राजस्थान का चित्तौड़गढ़ किला, अपनी वीरता, बलिदान और सम्मान की अमर कहानियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यह किला न सिर्फ वास्तुकला की दृष्टि से अद्भुत है, बल्कि इसके हर पत्थर में इतिहास के दर्दनाक अध्याय भी समाए हुए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस गौरवशाली किले के साथ एक रहस्यमयी पहलू भी जुड़ा है? स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के अनुसार, चित्तौड़गढ़ किले में आज भी रानी पद्मिनी और अन्य वीरांगनाओं की आत्माएं भटकती हैं।इस सवाल का जवाब जानने के लिए आइए चित्तौड़गढ़ के इतिहास और रहस्यों की गहराइयों में उतरते हैं।


रानी पद्मिनी और चित्तौड़गढ़ का बलिदान
सन् 1303 में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी के सौंदर्य की चर्चा सुनकर चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई की थी। महीनों तक घेरा डालने के बाद, जब किले की हार निश्चित हो गई, तब रानी पद्मिनी ने अन्य सैकड़ों क्षत्राणियों के साथ जौहर कर अपने सम्मान की रक्षा की थी।यह बलिदान सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक ऐसी अमर गाथा है जिसने चित्तौड़गढ़ की मिट्टी को भी वीरता की खुशबू से सराबोर कर दिया। लेकिन यही घटना चित्तौड़गढ़ किले को रहस्यमय और भयावह भी बनाती है।

क्या वाकई भटकती हैं आत्माएं?
कई स्थानीय लोग और वहां रात में ड्यूटी करने वाले गार्ड्स का दावा है कि उन्होंने किले के कुछ हिस्सों में रहस्यमयी हलचलें महसूस की हैं। कुछ पर्यटक बताते हैं कि उन्होंने जौहर कुंड के आसपास महिलाओं के चीखने, रोने या अचानक परछाइयों के गुजरने जैसी घटनाओं को अनुभव किया है।खास तौर पर रात के समय जब किला वीरान हो जाता है, तब वातावरण में एक अजीब सा भय और दर्द की अनुभूति होती है। कई बार रानी पद्मिनी के महल के पास हल्के कदमों की आवाजें और धीमे-धीमे रोने की आवाजें भी सुनी गई हैं।

जौहर कुंड: दर्द की अनकही गवाही
चित्तौड़गढ़ किले का जौहर कुंड वह स्थान है जहां रानी पद्मिनी समेत हजारों रानियों ने आत्मदाह किया था। माना जाता है कि इतनी बड़ी संख्या में आत्माएं एक ही स्थान पर अपने प्राणों का बलिदान कर चुकी हैं, इसलिए वहां आज भी उनकी पीड़ा और अधूरी इच्छाएं मौजूद हैं।कई लोग मानते हैं कि उन आत्माओं को अब भी शांति नहीं मिली और वे समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या कहता है?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो ऐसी घटनाओं को "पैरानॉर्मल एक्टिविटी" या "साइकोलॉजिकल इफेक्ट" कहा जा सकता है। जब किसी स्थान पर अत्यधिक भयावह और दर्दनाक घटनाएं घटती हैं, तो वहां का वातावरण और ऊर्जा भी प्रभावित हो जाती है।चित्तौड़गढ़ किला, जो तीन बार जौहर और अनगिनत युद्धों का साक्षी रहा है, वहां की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अब भी महसूस किया जा सकता है।मनुष्य का मन भी वातावरण से प्रभावित होता है और डर तथा भावनाओं के प्रभाव से कई बार हमें कुछ ऐसा महसूस होता है जो वास्तव में हो भी सकता है या केवल मन का भ्रम भी हो सकता है।

लोककथाओं और किस्सों में क्या कहा गया है?
स्थानीय लोककथाओं में बताया जाता है कि रानी पद्मिनी की आत्मा आज भी अपने महल के पास घूमती है। कहा जाता है कि वह अपने उन क्षणों को तलाशती हैं, जो उनके जीवन के सबसे भयावह और निर्णायक थे।कई किस्सों में यह भी कहा जाता है कि अमावस्या की रात को चित्तौड़गढ़ किला एक अलग ही रंग में दिखाई देता है, जैसे पूरा किला उस समय के दर्द को फिर से जी रहा हो।

पर्यटन के नजरिए से
भले ही ये कहानियां कितनी भी रहस्यमयी हों, पर चित्तौड़गढ़ किला पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय स्थल बना हुआ है। भारत और दुनिया भर से लोग इस किले के गौरवशाली इतिहास को जानने और महसूस करने आते हैं।ज्यादातर पर्यटक दिन के समय इस ऐतिहासिक स्थल का भ्रमण करते हैं, जबकि शाम ढलते ही किले में एक रहस्यमय सन्नाटा पसर जाता है।राजस्थान पर्यटन विभाग ने सुरक्षा कारणों से रात में किले में ठहरने की अनुमति नहीं दी है, जिससे इन रहस्यमयी कहानियों को और भी बल मिल जाता है।

निष्कर्ष
तो क्या वास्तव में चित्तौड़गढ़ किले में रानी पद्मिनी और अन्य वीरांगनाओं की आत्माएं भटकती हैं? इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन चित्तौड़गढ़ की दीवारों, महलों और कुंडों में आज भी दर्द, सम्मान और बलिदान की कहानियां गूंजती हैं।यह किला केवल पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि भारत के गौरवमयी इतिहास का एक जीवंत प्रतीक है। और जब आप वहां खड़े होकर इतिहास के उन लम्हों को महसूस करते हैं, तो एक अजीब सी ऊर्जा आपको जरूर छूती है — चाहे वह आत्माओं की हो या उस भूमि के अमर बलिदान की।

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