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Jaisalmer का 'जुरासिक पार्क', वीडियो में देखें डेजर्ट नेशनल पार्क जैसलमेर का क्षेत्रफल

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जैसलमेर न्यूज़ डेस्क, जैसलमेर इन दिनों एक बार फिर पूरी दुनिया में चर्चा में है। यहां के वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन यानी कृत्रिम गर्भाधान को दुनिया से गायब हो रहे गोडावण पर आजमाया। वो इसमें सफल रहे।इस तरह का प्रयोग करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है। इस तकनीक को करीब से जानने और दुनिया को इस पक्षी से रूबरू करवाने  टीम पहुंची रामदेवरा स्थित गोडावण ब्रीडिंग सेंटर।


जैसलमेर से करीब 125 किमी की दूरी पर स्थित रामदेवरा गांव के पास जंगल में करीब 2 स्क्वायर किमी एरिया में फैला है ये ब्रीडिंग सेंटर। ये ब्रीडिंग सेंटर जुरासिक पार्क मूवी की याद दिलाता है। उस पार्क में डायनासोर को पैदा किया गया और यहां दुनिया से लगभग गायब हो चुके गोडावण पक्षी को कृत्रिम गर्भाधान से जन्म दिया जा रहा है।टीम जैसे ही जंगल को पार कर उस एरिया में पहुंची तो ब्रीडिंग सेंटर के चारों तरफ करीब 10 फीट ऊंची तारबंदी मिली। यहां बिना परमिशन के एंट्री नहीं है। अलग अलग सेक्शन में गोडावण के लिए ये इलाका साल 2019 में बनना शुरू हुआ और 2022 में यहां ब्रीडिंग सेंटर का काम शुरू हुआ।

तिलोर पक्षी के सफल प्रयोग से मिला गोडावण का आइडिया

हालांकि, कृत्रिम गर्भाधान की तकनीक बहुत पुरानी है। पहली बार पक्षियों पर अबू धाबी स्थित इंटरनेशनल फंड फॉर हुबारा कंजर्वेशन फाउंडेशन (IFHC) में इसका प्रयोग किया गया था। ये प्रयोग तिलोर पक्षी पर किया गया। इसकी सफलता के बाद भारत के वैज्ञानिकों ने इसका प्रयोग दुनिया से लुप्त हो रहे गोडावण पक्षी पर करने की ठानी।इसके लिए भारत के वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) के वैज्ञानिक साल 2023 में अबू धाबी गए और इस तकनीक को सीखा। इसके बाद गोडावण पर इस तरह के परीक्षण के प्रयास शुरू किए। 8 महीने की कोशिशों के बाद गोडावण पर ये तकनीक सफल रही। इस तकनीक में नर गोडावण से वीर्य एकत्र किया जाता है। इसके बाद उसे मादा गोडावण में गर्भाधान किया जाता है।

रामदेवरा में वैज्ञानिकों ने 8 महीने दी ट्रेनिंग

सेंटर के 15 से 20 स्टाफ में से 5 टेक्निकल स्टाफ और साइंटिस्ट इन गोडावण के साथ काफी घुल-मिल गए थे। इनके लिए गोडावण को मैटिंग के लिए तैयार करना आसान था। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि गोडावण बेहद शर्मीले स्वभाव का होता है।परीक्षण के लिए लकड़ी की नकली मादा गोडावण बनाई गई। प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ. तुषना करकरिया ने नर गोडावण सुदा को चुना। डॉ. करकरिया ने बताया कि इनका मैटिंग सीजन मार्च से अक्टूबर के बीच होता है। इस दौरान ये मैटिंग करते हैं और मादा अंडे देती है।

सुबह 25 मिनट दी जाती थी ट्रेनिंग

डॉ करकरिया ने बताया कि रोज सुबह करीब 25 मिनट के लिए नकली मादा गोडावण को नर गोडावण सुदा के पास लाते। उसे मैटिंग के लिए तैयार करते ताकि उसका स्पर्म इकट्ठा किया जा सके। इस दौरान हम कई बार सफल भी हुए। स्पर्म को ट्यूब में लेकर लैब में चेक किया जाता था। इस तरह नर को एआई तकनीक से स्पर्म देने के लिए तैयार किया गया। जब ये तैयार हो गया तब टोनी नाम की मादा गोडावण के प्रजनन के सही समय का इंतजार किया गया।

रामदेवरा से सम ले जाया गया स्पर्म

सम ब्रीडिंग सेंटर में एक मादा प्रजनन के लिए तैयार थी तो उसी दिन रामदेवरा में एक नर से वीर्य सफलतापूर्वक एकत्र किया गया। माइक्रोस्कोप में गतिशीलता की जांच की गई। जांच करने के बाद इसे 25 डिग्री सेल्सियस पर एक बॉक्स में सम गांव स्थित सुदासरी ब्रीडिंग सेंटर में ले जाया गया।वहां प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा मादा का गर्भाधान किया गया। मादा ने 24 सितंबर के बाद एक अंडा दिया। अंडे से 16 अक्टूबर को चूजा निकला। चूजा स्वस्थ है और सम सीबीसी में अनुभवी कर्मचारियों द्वारा उसकी देखभाल की जा रही है।

माइनस 20 डिग्री तापमान में रखा जाता है स्पर्म

डॉ तुषना करकरिया ने बताया- फिलहाल लिक्विड नाइट्रोजन में स्पर्म प्रिजर्व किया जाता है। जहां माइनस 20 डिग्री तापमान में रखा जाता है। फिलहाल अबु धाबी में एक पक्षी के स्पर्म को 2 साल तक स्टोर किया जा सका है। यहां भी इसी तरह स्पर्म को सुरक्षित रखने के प्रयास किए जाएंगे। गोडावण का मार्च से अक्टूबर तक ब्रीडिंग पीरियड होता है। ऐसे में कृत्रिम गर्भाधान के लिए और स्पर्म इकट्ठा करने के लिए इस पीरियड का ही इस्तेमाल किया जाएगा।

बड़े पिंजरों में रखा जाता है पूरा ख्याल

यहां कई बड़े-बड़े पिंजरे लगाए गए हैं, ताकि उड़ने में परेशानी न हो। अंदर मिट्टी बिछाई गई है ताकि सबकुछ प्रकृति के करीब लगे। देखभाल करने वाले वैज्ञानिक पक्षी को विशेष आवाज में बोलकर अपना होने का एहसास दिलाते हैं। वे इन सबको अपना परिवार ही मानते हैं। क्योंकि अंडे से बाहर आने से लेकर अब तक यही लोग इनके खाने से लेकर सभी तरह का ख्याल रखने का काम करते हैं।

रामदेवरा में 28 गोडावण

साल 2022 में यहां सुदासरी से 8 गोडावण पक्षी लाए गए और यहां से उनको पालने की शुरुआत की गई। अब यहां कुल 28 गोडावण है। जिनमें 15 मेल और 13 फीमेल हैं। अंडे से निकलने के बाद इनके बड़े होने तक यहां मौजूद स्टाफ इनको माता-पिता की तरह पालते हैं। अमूमन इंसानों से दूर रहने वाला गोडावण पक्षी यहां इंसानों से घुल मिल गया है।सेंटर की प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ तुषना करकरिया बताती हैं कि पक्षियों ने पैदा होने के बाद से ही हमें ही देखा है। ये हमें ही जानते हैं। इसलिए हम इनको बचाने के लिए अन्य आबादी से दूर रखते हैं। अब जो तकनीक सीखकर आए हैं, उससे इनकी तादाद बढ़ाने में काफी मदद मिल सकेगी।

50 से ज्यादा सीसीटीवी से निगरानी

इन पक्षियों को बाहरी दुनिया से एक दम अलग रखा गया है। इनको जंगल से अंडों के रूप में लिया गया। अब यहां पालन पोषण कर इनको बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। यहां ये उम्र भर रहेंगे। इनके बच्चों को भी यहीं रखा जाएगा ताकि इनकी तादाद को और बढ़ाया जा सके। इनकी सुरक्षा के लिए स्टाफ है। साथ ही 50 से ज्यादा एचडी सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं।

 

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